कैकेई के वचन कठोर, भरत के सुनतहि अंसुआ भर आए, जननी के वचन कठोर, भरत के सुनतहि अंसुआ भर आए॥ धागा हो तो तोड़ दूं मैं, पर वचन न तोड़े जाएं, भरत के सुनतहि अंसुआ भर आए, जननी के वचन कठोर, भरत के सुनतहि अंसुआ भर आए॥ चिठ्ठी जो होती वाच सुनाते, मोसे करम ना
दोहा चार वेद छ: शास्त्रो में, बात मिली है दोय, दुःख दीन्या दुःख होंत है, सुख दीन्या सुख होय। राम नाम के आलसी, और भोजन में होशियार, तुलसी ऐसे मित्र को, मेरा बार बार धिक्कार॥ कबीर कमाई आपणी, कदे न निष्फल जाय, बोया पेड़ बबूल का, तो आम कहा से खाय। बोया जब वो आम
मेरे राम मेरे घर आएंगे, आएंगे प्रभु आएंगे। प्रभु के दर्शन की आस है, और भीलनी को विश्वास है॥ मेरे राम मेरे घर आयेंगे… अंगना रस्ता रोज बुहार रही, खड़ी खड़ी वो राह निहार रही। मन में लगन भीलनी मगन-2 भीलनी को भारी चाव है, और मन में प्रेम का भाव है। मेरे राम मेरे
प्रभु अपने दर से, अब तो ना टालों, गिरा जा रहा हूँ, उठा लो उठा लो-२ (प्रभु अपने दर से, अब तो ना टालो, गिरा जा रहा हूँ, उठा लो उठा लो) खाली ना जाता कोई दर से तुम्हारे, द्वारे खड़ा हूँ नन्ही बाहें पसारे, चरणों की सेवा में, लगा लो लगा लो, गिरा जा
बैठ सामने तेरे बाबा, तुझको रोज़ मनाता हूँ। गोर करोगे कभी तो बाबा, सोच के अर्जी लगाता हूँ। बैठ सामने तेरे बाबा… माना चाहने वाले बहुत है, तभी तो तुम इतराते हो। मुझे भूल कर खुश जब हो तुम, क्यों सपनों में आते हो। मुझसा पागल नही मिलेगा, तुझको ये बतलाता हूँ। बैठ सामने तेरे
गंगा-यमुना तुम ही बता दो, मेरे राम वन वन भटक रहे, मेरी सिया गई तो कहां गई, पेड़ और पौधों तुम ही बता दो, क्या फूलों में वो समाए गई, मेरी सिया गई तो कहां गई मेरे राम वन वन भटक रहे मेरी सिया गई तो कहां गई क्या लहरों में वो समाए गई, मेरी
तू राम भजन कर प्राणी, तेरी दो दिन की जिन्दगानी। काया-माया बादल छाया, मूरख मन काहे भरमाया॥ उड़ जायेगा साँसका पंछी, फिर क्या है आनी-जानी। तू राम भजन कर प्राणी… जिसने राम-नाम गुन गाया, उसको लगे ना दुखकी छाया। निर्धनका धन राम-नाम है, मैं हूँ राम दिवानी। तू राम भजन कर प्राणी… जिनके घरमें माँ
राम जी के नाम ने तो पत्थर भी तारे, जो न जपे राम नाम वो हैं किस्मत के मारे।। राम जी के नाम को शिवजी ने ध्याया, तुलसी ने राम जी से सरबस पाया, कविरा तो भजन कर कर भए मतवारे।। राम जी के नाम ने तो पत्थर भी तारे, राम नाम अमृत है राम
हे रोम रोम में बसने वाले राम, जगत के स्वामी, हे अन्तर्यामी, मैं तुझसे क्या मांगूं॥ आप का बंधन तोड़ चुकी हूं, तुझ पर सब कुछ छोड़ चुकी हूं। नाथ मेरे मैं, क्यूं कुछ सोचूं, तू जाने तेरा काम॥ जगत के स्वामी, हे अन्तर्यामी, मे तुझ से क्या मांगूं। हे रोम रोम मे बसने वाले
टेक:- सुन शबरी बात हमारी जप तप ब्रत योग बिधाना बहुदेव पुराण बखानारी सबसे मम भक्ति सुखारी, सुन शबरी…। कोई छाप तिलक तन धारे कोई जटा विभूति रमावे री मुझे प्रेम भक्ति एक प्यारी, सुन शबरी…। नही कुल जाति मैं जानूँ निज भक्त ऊंच कर मानू री यह सत्य बचन निर्धारी, सुन शबरी…। तुझ प्रेम