॥ दोहा ॥ नुगरा नर तो मत मिलो, चाहे पापी मिलो हजार। एक नुगरे रे शीश पर, लख पापिया रो पाप॥ अवगुण बहुत किया। गुरु साहब मैंने, अवगुण बहुत किया॥ नौ-दस मास गर्भ में झूले, जननी को दुखड़ा दिया। गुरु साहब मैंने, अवगुण बहुत किया॥ जितरा पैर धरिया धरण पे, पग पग पाप किया। गुरु
मैं तो अरज करू गुरु थाने, चरणा में राखजो माने, हेलो तख्त देवू की थाने, म्हारी लाज शर्म सब थाने। मैं तो अरज करू गुरु थाने, चरणा में राखजो माने। गुरु मात पिता सुख दाता, सब स्वारथ का है नाता, एक तारण तिरण गुरु दाता, ज्यारा चार वेध्द जस गाता। मैं तो अरज करू गुरु
गुरुजी मेरा अवगुण भरा शरीर, बता दो कैसे तारो गे, बता दो कैसे तारो गे(२) गुरुजी मेरा अवगुण भरा शरीर… ना मैं गंगा जमुना नहाई, हर की पौड़ी जा ना पाई, गुरुजी मेरी माडी है तकदीर, बता दो कैसे तारो गे। गुरुजी मेरा अवगुण भरा शरीर… ना मैंने बड़ पीपल सींचे, सब दिन मोह माया
गुरुदेव मेरे दाता मुझको ऐसा वर दो। सेवा सत्संग सुमिरण से झोली मेरी भर दो। गुरुदेंव मेरे दाता मुझको ऐसा वर दो।। नफरत जो करे मुझसे मैं उनसे प्यार करूँ। कहते है बुरा मुझको उनका सत्कार करूँ। नफरत को मिटा कर मुझमे इक प्यार का रंग भर दो। गुरुदेंव मेरे दाता मुझको ऐसा वर दो।।
म्हारी हालो ये रेल भवानी सतगुरु जी के चला देश(2) म्हारी हालो ये… जब हुई टिकट की त्यारी म्हारा सतगुरु खोली बारी, इमे बैठ सभी नर नारी सुमरला देव गणेश। म्हारी हालो ये… इंजन न मारी सिटी म्हारा सतगुरु बंगा टीटी, आ दुनिया रेगी रीति, जाका चड़ ग्या भरम कलेश। म्हारी हालो ये… आ हरियल
गुरुदेव दया करके, मुझको अपना लेना, मैं शरण पड़ा तेरी, चरणों में जगह देना। करुणामई नाम तेरा, करुणा दिखलाओं तुम, सोये हुए भागो को, मेरे बाबा जगाओं तुम, मेरी नाँव भँवर डोले, उसे पार लगा देना, गुरुदेव दया करके, मुझको अपना लेना, मैं शरण पड़ा तेरी, चरणों में जगह देना। तुम सुख के सागर हो,
गुरुदेव सहारा बन जाओ… प्रभु राम कहो, घनश्याम कहो, मेरे श्याम सहारा बन जाओ, गुरुदेव सहारा बन जाओ। घट भीतर घोर अंधेरा है, गुरुदेव उजाला बन जाओ गुरुदेव सहारा बन जाओ। जय जय जय जय जय गुरुदेवा, गुरुदेव सहारा बन जाओ। भवसागर नैया डूब रही, गुरुदेव किनारा बन जाओ, गुरुदेव सहारा बन जाओ। दिन बीत
जिस दिन आया तेरे द्वार प, मेरे होगे पो बारा, हो मेरे गुरु मुरारी, इसा के करया, जिस दिन आया तेरें द्वार प, मेरे होगे पो बारा। भुलूं ना तेरा नाम हो, पुजे जां तेरा धाम हो, मैं सेवक बणगया थारा हो, हो मेरे गुरु मुरारी, इसा के करया, जिस दिन आया तेरें द्वार प,
नाम तेरे दी चढ़ गई मस्ती, भूल गई सानू अपनी हस्ती, मस्ती दे विच तन मन रंगना, अपनी भूला के हसती, डम डम वजे गुरुआ दा डमरु… सबना दे दुख हरदा जावे, सबदी झोली भरदा जावे, तुसी रहमत वाला दातया, हथ मेरे सिर उते रखया, डम डम वजे गुरुआ दा डमरु… गल्ल विच है हारा