दरबार तेरा निराला तुम्हें अंजनी का लाला। अंजनी का लाला तू है अंजनी का लाला।। तूँ है निराला तेरी महिमा निराली। दर पर जो आए कोई बन के सवाली।। उसके संकट को तूने टाला।।1।। मंदिर निराले तेरे सेवक निराले। मन में करे है तू ही सबके उजाले।। हमने तो तेरे दर पर डेरा डाला ।।2।।
फरियाद दुखी दिल की तुमको ही सुनाऊंगा। बजरंग तेरे दर बिन किस दर पर जाऊंगा। मिलकर तेरी दुनिया ने मुझको बड़ा लुटा है। सुंदरता के पोछे सब नाटक झूठा है। भटका हूँ मैं राहों से कब मंजिल पाऊंगा।।1।। अँखिया तेरे बिरहा में दिन रात बरसती है। तेरे दर्शन पाने को सदियों से तरसती है। रहमत
गर हो तेरी दया का इशारा। डूबता हो कोई मिलता पल भर में उसको किनारा। ग्राह गज में हुई थी लड़ाई। गज ने आवाज तुमको लगाई। गर न होती दया मारा जाता वो गजराज बेचारा। शिवरी देखे थी बाट तिहारी। राह में निशदिन लगाती बुहारी। जो ही दर्शन किये कर गई पल भर में जग
ए मेहंदीपुर के बालाजी, कभी मेरे घर भी आ जाना। मैं दास आपका जन्मों से, आकर धीर बंधा जाना।। तेरे रोज सवामण भोग लगे, नित खीर चूरमा खाये तूँ। मेरे पास तो रूखी सूखी है, निर्धन के घर नहीं आये तूँ। अब और सहा नहीं जाता है, दर्शन दे धन्य बना जाना।।1।। सोना चांदी के
आवण में के मजो है, जावण में के मजो है। थारे मेहंदीपुर का दर्शन, पावण में के मजो है। हर साल जन्म दिन पर बाबा म्हें दौड़या आवां। सवा मन को चूरमो म्हें दरबार में चढ़ावां। खाके जरा तो देखल्यो खांवण में के मजो है।।1।। जय जय बाबा, जय जय बाबा, जय जय बाबा बोलो।
॥दोहा॥ श्री गुरु चरण सरोज छवि, निज मन मन्दिर धारि। सुमरि गजानन शारदा, गहि आशिष त्रिपुरारि॥ बुद्धिहीन जन जानिये, अवगुणों का भण्डार। बरणौं परशुराम सुयश, निज मति के अनुसार॥ ॥चौपाई॥ जय प्रभु परशुराम सुख सागर, जय मुनीश गुण ज्ञान दिवाकर। भृगुकुल मुकुट बिकट रणधीरा, क्षत्रिय तेज मुख संत शरीरा॥ जमदग्नी सुत रेणुका जाया, तेज प्रताप
‘श्री गणपति गुरुपद कमल, प्रेम सहित सिरनाय। नवग्रह चालीसा कहत, शारद होत सहाय॥ जय जय रवि शशि सोम बुध जय गुरु भृगु शनि राज। जयति राहु अरु केतु ग्रह करहुं अनुग्रह आज॥ ॥चौपाई॥ ॥श्री सूर्य स्तुति॥ प्रथमहि रवि कहं नावौं माथा, करहुं कृपा जनि जानि अनाथा। हे आदित्य दिवाकर भानू, मैं मति मन्द महा अज्ञानू।
॥दोहा॥ हे पितरेश्वर आपको दे दियो आशीर्वाद, चरणाशीश नवा दियो रखदो सिर पर हाथ॥ सबसे पहले गणपत पाछे घर का देव मनावा जी। हे पितरेश्वर दया राखियो, करियो मन की चाया जी॥ ॥चौपाई॥ पितरेश्वर करो मार्ग उजागर, चरण रज की मुक्ति सागर। परम उपकार पित्तरेश्वर कीन्हा, मनुष्य योणि में जन्म दीन्हा॥ मातृ-पितृ देव मन जो
॥दोहा॥ श्री गुरु चरण ध्यान धर, सुमिरि सच्चिदानन्द। श्याम चालीसा भजत हूँ, रच चैपाई छन्द॥ ॥चौपाई॥ श्याम श्याम भजि बारम्बारा, सहज ही हो भवसागर पारा। इन सम देव न दूजा कोई, दीन दयालु न दाता होई। भीमसुपुत्र अहिलवती जाया, कहीं भीम का पौत्र कहाया। यह सब कथा सही कल्पान्तर, तनिक न मानों इनमें अन्तर। बर्बरीक