॥दोहा॥ जय जय जय जग पावनी, जयति देवसरि गंग। जय शिव जटा निवासिनी, अनुपम तुंग तरंग॥ ॥चौपाई॥ जय जय जननी हराना अघखानी। आनंद करनी गंगा महारानी॥ जय भगीरथी सुरसरि माता। कलिमल मूल डालिनी विख्याता॥ जय जय जहानु सुता अघ हनानी। भीष्म की माता जगा जननी॥ धवल कमल दल मम तनु सजे। लखी शत शरद चंद्र
हे जी रे… हे जी रे… हे जी रे… हे रामचंद्र कह गए सिया से, रामचंद्र कह गए सिया से… ऐसा कलयुग आएगा, हंस चुगेगा दाना दुनका, कौआ मोती खाएगा। हे जी रे… सिया ने पूछा भगवन: कलयुग में धर्म-कर्म को कोई नहीं मानेगा? तो प्रभु बोले: धर्म भी होगा कर्म भी होगा, (धर्म भी
॥दोहा॥ बन्दौं सन्तोषी चरण रिद्धि-सिद्धि दातार। ध्यान धरत ही होत नर दुःख सागर से पार॥ भक्तन को सन्तोष दे सन्तोषी तव नाम। कृपा करहु जगदम्ब अब आया तेरे धाम॥ ॥चालीसा॥ जय सन्तोषी मात अनूपम। शान्ति दायिनी रूप मनोरम॥ सुन्दर वरण चतुर्भुज रूपा। वेश मनोहर ललित अनुपा॥1॥ श्वेताम्बर रूप मनहारी। माँ तुम्हारी छवि जग से न्यारी॥
॥दोहा॥ नीलवरण मा कालिका रहती सदा प्रचंड। दस हाथो मई ससत्रा धार देती दुस्त को दांड्ड़॥ मधु केटभ संहार कर करी धर्म की जीत। मेरी भी बढ़ा हरो हो जो कर्म पुनीत॥ ॥चौपाई॥ नमस्कार चामुंडा माता। तीनो लोक मई मई विख्याता॥ हिमाल्या मई पवितरा धाम है। महाशक्ति तुमको प्रडम है॥1॥ मार्कंडिए ऋषि ने धीयया। कैसे
गोविंदा आला रे आला ज़रा मटकी सम्भाल बृजबाला गोविंदा आला रे आला ज़रा मटकी सम्भाल बृजबाला अरे एक दो तीन चार संग पाँच छः सात हैं ग्वाला अरे एक दो तीन चार संग पाँच छः सात हैं ग्वाला गोविंदा आला रे आला ज़रा मटकी सम्भाल बृजबाला हे.. हो आई माखन के चोरों की सेना हो