श्री भागवत भगवान की है आरती, पापियों को पाप से है तारती।। ये अमर ग्रन्थ ये मुक्ति पन्थ, ये पंचम वेद निराला, नव ज्योति जगाने वाला, हरि नाम यही हरि धाम यही, जग में मंगल की आरती, पापियों को पाप से है तारती।। ये शान्तिगीत पावन पुनीत, पापों को मिटानेवाला, हरि दर्श कराने वाला, जे
शास्त्रों के अनुसार भगवान को आरती के बाद भोग लगाया जाता है। आज हम श्री राम जी का बहुत ही सूंदर भोग लेके आये है। जो निसंदेह आपको श्री राम जी के साथ भाव से जोड़ देगा और आपको मन में शांति और श्रद्धा का भाव पैदा करेगा तो आएंगे मेरे साथ इस राम जी
शास्त्रों के अनुसार भगवान को आरती के बाद भोग लगाया जाता है। आज हम कृष्ण जी का बहुत ही सूंदर भोग लेके आये है। जो निसंदेह आपको गोविन्द जी के साथ भाव से जोड़ देगा और आपको मन में शांति और श्रद्धा का भाव पैदा करेगा तो आएंगे मेरे साथ इस कृष्णा के भोग को
जय लक्ष्मी रमणा, स्वामी जय लक्ष्मी रमणा। सत्यनारायण स्वामी, जन पातक हरणा॥ ॥ॐ जय…॥ रतन जड़ित सिंहासन, अदभुत छवि राजे। नारद करत नीराजन, घंटा वन बाजे॥ ॥ ॐ जय…॥ प्रकट भए कलिकारण, द्विज को दरस दियो। बूढ़ो ब्राह्मण बनकर, कंचन महल कियो॥॥ ॐ जय…॥ दुर्बल भील कठोरो, जिन पर कृपा करी। चंद्रचूड़ एक राजा, तिनकी
जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा। माता जाकी पार्वती पिता महादेवा।। जय गणेश ।। एकदन्त दयावन्त चार भुजा धारी। माथे पर तिलक सोहे, मूसे की सवारी।। जय गणेश ।। पान चढ़े फूल चढ़े और चढ़े मेवा। लड्डुअन का भोग लगे सन्त करे सेवा।। जय गणेश ।। अँधे को आँख देत कोढ़िन को काया बाँझन
ॐ जय जगदीश हरे, स्वामी जय जगदीश हरे। भक्त जनों के संकट, दास जनों के संकट, क्षण में दूर करे || ॐ जय || जो ध्यावे फल पावे, दुःखबिनसे मन का, स्वामी दुःखबिन से मन का, सुख सम्पति घर आवे, कष्ट मिटे तन का || ॐ जय || मात पिता तुम मेरे, शरण गहूं किसकी,
सुखकर्ता दु:खहर्ता वार्ता विघ्नाची। नुरवी पुरवी प्रेम कृपा जयाची॥ सर्वांगी सुंदर उटी शेंदुराची। कंठी झळके माळ मुक्ताफळांची॥ जय देव, जय देव जय मंगलमूर्ती। दर्शनमात्रे मन कामना पुरती॥ रत्नखचित फरा तुज गौरीकुमरा। चंदनाची उटी कुमकुम केशरा॥ हिरेजडित मुकुट शोभतो बरा। रुणझुणती नूपुरे चरणी घागरिया॥ जय देव जय देव… लंबोदर पीतांबर फणिवरबंधना। सरळ सोंड वक्रतुंड त्रिनयना॥ दास
आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की गले में बैजंती माला, बजावै मुरली मधुर बाला। श्रवण में कुण्डल झलकाला, नंद के आनंद नंदलाला। गगन सम अंग कांति काली, राधिका चमक रही आली। लतन में ठाढ़े बनमाली; भ्रमर सी अलक, कस्तूरी तिलक, चन्द्र सी झलक; ललित छवि श्यामा प्यारी की॥ श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥
मैं तो आरती उतारूँ रे संतोषी माता की मैं तो आरती उतारूँ रे संतोषी माता की मैं तो आरती उतारूँ रे जय जय संतोषी माता जय जय माँ जय जय संतोषी माता जय जय माँ जय जय संतोषी माता जय जय माँ बड़ी ममता है बड़ा प्यार माँ की आँखों में माँ की आँखों में