Author: Anil Kumar

सूर्य चालीसा – कनक बदन कुण्डल मकर, मुक्ता माला अङ्ग

॥दोहा॥ कनक बदन कुण्डल मकर, मुक्ता माला अङ्ग, पद्मासन स्थित ध्याइए, शंख चक्र के सङ्ग॥ ॥चौपाई॥ जय सविता जय जयति दिवाकर!, सहस्त्रांशु! सप्ताश्व तिमिरहर॥n भानु! पतंग! मरीची! भास्कर!, सविता हंस! सुनूर विभाकर॥1॥ विवस्वान! आदित्य! विकर्तन, मार्तण्ड हरिरूप विरोचन॥ अम्बरमणि! खग! रवि कहलाते, वेद हिरण्यगर्भ कह गाते॥2॥ सहस्त्रांशु प्रद्योतन, कहिकहि, मुनिगन होत प्रसन्न मोदलहि॥ अरुण सदृश

श्री शनि चालीसा – जय गणेश गिरिजा सुवन,

॥दोहा॥ जय गणेश गिरिजा सुवन, मंगल करण कृपाल। दीनन के दुःख दूर करि, कीजै नाथ निहाल॥ जय जय श्री शनिदेव प्रभु, सुनहु विनय महाराज। करहु कृपा हे रवि तनय, राखहु जन की लाज॥ ॥चौपाई॥ जयति जयति शनिदेव दयाला। करत सदा भक्तन प्रतिपाला॥ चारि भुजा, तनु श्याम विराजै। माथे रतन मुकुट छवि छाजै॥ परम विशाल मनोहर

श्री कृष्णा चालिसा – बंशी शोभित कर मधुर, नील जलद तन श्याम।

॥दोहा॥ बंशी शोभित कर मधुर, नील जलद तन श्याम। अरुण अधर जनु बिम्बा फल, नयन कमल अभिराम॥ पूर्ण इन्द्र, अरविन्द मुख, पिताम्बर शुभ साज। जय मनमोहन मदन छवि, कृष्णचन्द्र महाराज॥ ॥चौपाई॥ जय यदुनन्दन जय जगवन्दन। जय वसुदेव देवकी नन्दन॥ जय यशुदा सुत नन्द दुलारे। जय प्रभु भक्तन के दृग तारे॥ जय नट-नागर नाग नथैया। कृष्ण

श्री गणेश चालीसा – ॥दोहा॥ जय गणपति सद्गुण सदन,

॥दोहा॥ जय गणपति सदगुण सदन, कविवर बदन कृपाल। विघ्न हरण मंगल करण, जय जय गिरिजालाल॥ ॥चौपाई॥ जय जय जय गणपति गणराजू। मंगल भरण करण शुभः काजू॥ जै गजबदन सदन सुखदाता। विश्व विनायका बुद्धि विधाता॥ वक्र तुण्ड शुची शुण्ड सुहावना। तिलक त्रिपुण्ड भाल मन भावन॥ राजत मणि मुक्तन उर माला। स्वर्ण मुकुट शिर नयन विशाला॥ पुस्तक

जय सियाराम – भये प्रगट कृपाला, दीनदयाला कौसल्या हितकारी

भये प्रगट कृपाला दीनदयाला कौसल्या हितकारी। हरषित महतारी मुनि मन हारी अद्भुत रूप बिचारी॥ लोचन अभिरामा तनु घनस्यामा निज आयुध भुज चारी। भूषन वनमाला नयन बिसाला सोभासिन्धु खरारी॥ कह दुइ कर जोरी अस्तुति तोरी केहि बिधि करौं अनंता। माया गुन ग्यानातीत अमाना वेद पुरान भनंता॥ करुना सुख सागर सब गुन आगर जेहि गावहिं श्रुति संता।

हनुमान चालीसा – श्री गुरु चरन सरोज रज, निज मनु मुकुर सुधारि।

॥दोहा॥ श्री गुरु चरन सरोज रज, निज मनु मुकुर सुधारि। बरनउं रघुबर विमल जसु, जो दायकु फल चारि॥ बुद्धिहीन तनु जानिकै, सुमिरौं पवन-कुमार। बल बुद्धि विद्या देहु मोहिं, हरहु कलेश विकार॥ ॥चौपाई॥ जय हनुमान ज्ञान गुण सागर। जय कपीस तिहुँ लोक उजागर॥ राम दूत अतुलित बल धामा। अंजनि-पुत्र पवनसुत नामा॥ महावीर विक्रम बजरंगी। कुमति निवार

म्हारी विनती सुनो हनुमान, धरु में थारो ध्यान,पवन के प्यारा, अंजनी के लाल दुलारा

म्हारी विनती सुनो हनुमान, धरु में थारो ध्यान, पवन के प्यारा, अंजनी के लाल दुलारा अंजनी के लाल दुलारा-2 अंजनी के लाल दुलारा, राम का प्यारा-2 1. ?सिर मुकुट गले फूलमाला,थे हो लाल लंगोटे वाला-2 थारे कुंडल झलके कान-2, चंद्र उजियारा। अंजनी के लाल दुलारा। म्हारी विनती सुनो हनुमान, धरु में थारो ध्यान,पवन के प्यारा,

माँ वीणा पानी हो विद्या वरदानी हो।

माँ वीणा पानी हो, विद्या वरदानी हो, मेहरो वाली हो, ओ माँ, ओ माँ, ओ माँ, ओ माँ, अपने भक्तो की, अपने बच्चो की तुम रखवाली हो, मेरी माँ, ओ माँ।। ◾️नाम है जितने माता तुम्हारे, एक रूप के हे जगदम्बे, रूप अनेको सारे, शारदे माँ हो तुम, लक्ष्मी माँ हो तुम, कहीं पे काली

मेरी विपदा टाल दो आकर हे जग जननी माता।

मेरी विपदा टाल दो आकर, हे जग जननी माता।। ◾️तू वरदानी है, आद भवानी है, माँ तू वरदानी है, आद भवानी है, क्या में तेरा लाल नहीं हूँ, क्या तू माँ नहीं मेरी, फिर क्यों लगाई देरी, तू ही कहदे है ये कैसा, माँ बेटे का नाता, शेरों वाली माता, शेरों वाली माता।। ◾️में अज्ञानी

नित महिमा मैं गाउँ मैया तेरी।

नित महिमा मैं गाउँ मैया तेरी, ◾️और क्या माँगू मैं तुमसे माता, बस धूल चरण की चाहूँ, पल पल याद करूँ मैं तुमको, मैं हिरे रतन ना चाहूँ, अब तक तेरा प्यार मिला है, माँ हर मांग मिली मेरे मन की, आगे भी तू रखना दया माँ, तू मालिक है त्रिभुवन की, नित महिमा मैं