रावण के देश गयो, सिया को संदेशो लायो, कबहुँ ना किन्ही योद्धा, बात अभिमान की, रावण के देश गयों, सिया को संदेशो लायो, रावण के देश गयो।। राक्षको को मार डाला, वाटिका उजार डाली, बेसहत मानी नाही, रावण बलवान की, रावण के देश गयों, सिया को संदेशो लायो, रावण के देश गयो।। क्षण में समुन्द्र
सात समंदर लांघ के हनुमत लंकानगरी आ गए हनुमत लंकानगरी आ गए। ऐसा किया कमाल देखकर लंकावासी डर गए, सात समंदर लांघ के हनुमत लंकानगरी आ गए। लंकापुर पहुंचे हनुमत जी, किया प्रभु का ध्यान, मात सिया को खोजे पवनसुत लंका में अनजान, असुरों संग बैठी मेरी माँ ये देख क्रोध में आ गए सात
तेरे चरणों में मैं आ गया, हनुमंता करदो दया, तेरे चरणों में मैं आ गया, घबराये मेरा जिया, तेरे चरणों में मैं आ गया, आ गया आ गया तेरे चरणों में मैं आ गया॥ हर पल तुझको मैं याद करता हूँ कोई नाम आता नही। तुम्हारे ही दर से फिर भी मेरे सर से कोई
अंजनी का लाला बड़ा मतवाला, हवा में उड़ता जाये रे मेरा राम दुलारा॥ एक दिन देखा मैंने अवधपुरी में, अवधपुरी में रामा अवधपुरी में, राम की लगन लगायी रे मेरा राम दुलारा, हवा में उड़ता जाये मेरा राम दुलारा॥ एक दिन देखा मैंने सुमिरो पर्वत पे, सुमिरो पर्वत पे रामा सुमिरो पर्वत पे, संजीवन बूटी
बालाजी यो होया रोग पुराना हो, मेहंदीपुर ने छोड़ दियां आज सोनीपत राणा हो। तेरी बेटी पे संकट आया, अरे रखो जाके कुन बांस आया, ऊपर से दुःख न्यारा छूट गया पीना खाना, बालाजी यो होया रोग पुराना हो। कड़े लाडू काढ़े बर्फी ख्वाउ, लाया लाया थक गया पति कमाऊ, और के बाबा तने बताओ
मेरे मन बस गया है यो अंजनी का हनुमान। अंजनी माँ का राज दुलारा, पवन पिता का पुत्र प्यारा, म्हारा से भगवान। मेरे मन बस गया है यो अंजनी का हनुमान लाल लंगोटा हाथ में सोटा, यो मोटा से साहूकार। मेरे मन बस गया है यो अंजनी का हनुमान मंगल का दिन शुभ का हो
मैं के बोलूं बालाजी, तने सब बातां का बेरा स, पिछले साल घणे तारे, पर इब के नम्बर मेरा स॥ मेरे अगर पडोसी सारे, तने उनका काम बनाया स, किसी ने काठ ली कोठी, किसी ने महल बनाया स, तन्ने यो के हाल बनाया मेरा, दो कमरा का डेरा स, पिछले साल घणे तारे, पर
करते हो कीलकार बाग़ मे करते हो किलकारी, वीर बजरंगी बाँदरिया संगी करते हो किलकार वीर बजरंगी। लाल लंगोटा हाथ में घोटा, गल पुष्पन की माला, अंजनी लाला दिनदयाला, करो पलक में सहाय वीर बजरंगी। तुलसीदास संत मुख गाई राम छवि मन भाई, गृत विप्र का रूप धारकर उनको राह दिखाई, राम मिलन की सुध