तर्ज : ऐसी मस्ती कहाँ मिलेगी…. ॥टेर॥ हे हनुमान ग्यान गुण सागर,सुनो विनय अब मेरी, नाथ करो ना देरी-2, तेरे भरोसे बैठा देखें, कब से राह तुम्हारी, ले लो सुधी हमारी-2 हाथ में घोटा लाल लंगोटा, उर में राम बिराजे, कंचन वरण केशरी नन्दन, कानन कुण्डल साजे, राम रमापती के पायक मैं, जाऊँ तुम पर
सोने की लंका जलाए गयो रे, एक छोटो सो वानर, छोटो सो वानर, एक छोटो सो वानर, रावण को पानी पिलाए गयो रे, एक छोटो सो वानर, सोने की लंका जलाये गयो रे… बालापन में सूरज ने निगल्यौ, फल समझ कर खा गयो रे, एक छोटो सो वानर, सोने की लंका जलाये गयो रे… शक्ति
जय जय जय बजरंगबली-२ महावीर हनुमान गोसाई-२ तुम्हारी याद भली, जय जय जय बजरंगबली-२ राम सिया राम सिया राम सिया राम साधु संत के हनुमत प्यारे-२ भक्त ह्रदय श्री राम दुलारे, राम रसायन पास तुम्हारे-२ सदा रो तुम राम दुलारे, तुमरी कृपा से हनुमत बीरा, सगरो विपद टली, जय जय जय बजरंगबली-२ राम सिया राम
।। दोहा ।। लाल लंगोटा हथ बनिया, मुख में नागर पान। लंका में वानर चले, श्री अंजनी सूत हनुमान। सीता माता की गोदी में, हनुमत डाली मूंदड़ी। सुनकर जामवंत कि बात , हनुमंत मारी एक छलांग। हिरदै ध्यान राम को राख। सागर कूद पड़े हनुमान। शीश पर राखी मुन्दडी। सीता माता की गोदी में, हनुमत
जय हनुमान ज्ञान गुण सागर, जय कपीस तिहु लोक उजागर, रामदूत अतुलित बल धामा, अंजनी पुत्र पवन सुत नामा। दाता शक्ति दे, दाता भक्ति दे, सच के पथ पे चलते – चलते, जीवन को रंग दे। अव गुण को गुण दे, निर्मल मन कर दे, काँटों से भरे जीवन को, फूलों से भर दे। बीच
जब रावण पापी न माना, प्यार से बात तुम्हारी, जय सिया राम की बोल के तुमने, फूंक दी लंका सारी, सीता बोली बजरंग बाला मैं जाऊ बलहारी, जय सिया राम की बोल के तुमने, फूंक दी लंका सारी। अज्ञानी पापी ने तुम्हरी, पूंछ में आग लगा दी, मन में दबी थी क्रोध की ज्वाला, जुल्मी
भक्त राज हनुमान का, सुमिरण है सुख कार, जीवन नौका को करे, भव सिन्धु से पार। संकट मोचन नाथ को, सौंप दे अपनी डोर, छटेगी दुखों को पल में, छायी घटा घनघोर। जब कष्टों के दैत्य को, लगेगा बजरंग बाण, होगी तेरी हर मुश्किल, धडियों में आसान। महा दयालु हनुमत का, जप ले मनवा नाम,
हे संकट मोचन करते है वंदन तुमरे बिना संकट कौन हरे, सालासर वाले तुम हो रखवाले, तुम्हरे बिना संकट कौन हरे, सिवा तेरे न दूजा हमारा, तू ही आ कर के देता सहारा, जो विपदा आये पल में मिट जाये, तुम्हरे बिना संकट कौन हरे, तूने रघुवर के दुखड़ो को टाला, हर मुसीबत से उनको
ओ भगवान को भजने वाले धर ले मन में ध्यान, भाव बिनु मिले नहीं भगवान, दुर्योधन की छोड़ी मेवा विदुरानी की भा गयी सेवा श्रध्हा और समर्पण से ही रीझै है भगवान भाव बिनु मिले नहीं भगवान … ||1|| झूठे फल शबरी के खाए राम ने रूचि रूचि भोग लगाए जो ढूंढे उसको मिल जाये
जरा ये तो बता घाटे वाले तेरा जलवा कहाँ पर नहीं है नजरो में है तेरा नजारा तेरा रुतबा भी कुछ कम नहीं है जरा ये तो बता घाटे वाले…. आँख वालों ने है तुमको देखा कान वालों ने तुमको सुना है तेरा जलवा उसी ने है देखा जिनकी आँखों पे परदा नहीं है जरा