श्री राधा चालीसा – श्री राधे वुषभानुजा, भक्तनि प्राणाधार।

॥दोहा॥ श्री राधे वुषभानुजा, भक्तनि प्राणाधार। वृन्दाविपिन विहारिणी, प्रानावौ बारम्बार॥ जैसो तैसो रावरौ, कृष्ण प्रिय सुखधाम। चरण शरण निज दीजिये सुन्दर सुखद ललाम॥ ॥चौपाई॥ जय वृषभानु कुँवरी श्री श्यामा, कीरति नंदिनी शोभा धामा॥ नित्य बिहारिनी रस विस्तारिणी, अमित मोद मंगल दातारा॥1॥ राम विलासिनी रस विस्तारिणी, सहचरी सुभग यूथ मन भावनी॥ करुणा सागर हिय उमंगिनी, ललितादिक

श्री गायत्री चालीसा – ह्रीं श्रीं क्लीं मेधा प्रभा जीवन ज्योति प्रचण्ड।

॥दोहा॥ ह्रीं श्रीं क्लीं मेधा प्रभा जीवन ज्योति प्रचण्ड। शान्ति कान्ति जागृत प्रगति रचना शक्ति अखण्ड॥ जगत जननी मङ्गल करनि गायत्री सुखधाम। प्रणवों सावित्री स्वधा स्वाहा पूरन काम॥ ॥चौपाई॥ भूर्भुवः स्वः ॐ युत जननी। गायत्री नित कलिमल दहनी॥ अक्षर चौविस परम पुनीता। इनमें बसें शास्त्र श्रुति गीता॥ शाश्वत सतोगुणी सत रूपा। सत्य सनातन सुधा अनूपा॥

श्री काली चालीसा – जयकाली कलिमलहरण, महिमा अगम अपार

॥दोहा॥ जयकाली कलिमलहरण, महिमा अगम अपार महिष मर्दिनी कालिका, देहु अभय अपार॥ अरि मद मान मिटावन हारी। मुण्डमाल गल सोहत प्यारी॥ अष्टभुजी सुखदायक माता। दुष्टदलन जग में विख्याता॥1॥ भाल विशाल मुकुट छवि छाजै। कर में शीश शत्रु का साजै॥ दूजे हाथ लिए मधु प्याला। हाथ तीसरे सोहत भाला॥2॥ चौथे खप्पर खड्ग कर पांचे। छठे त्रिशूल

चामुण्डा देवी चालीसा – नीलवरण मा कालिका रहती सदा प्रचंड।

॥दोहा॥ नीलवरण मा कालिका रहती सदा प्रचंड। दस हाथो मई ससत्रा धार देती दुस्त को दांड्ड़॥ मधु केटभ संहार कर करी धर्म की जीत। मेरी भी बढ़ा हरो हो जो कर्म पुनीत॥ ॥चौपाई॥ नमस्कार चामुंडा माता। तीनो लोक मई मई विख्याता॥ हिमाल्या मई पवितरा धाम है। महाशक्ति तुमको प्रडम है॥1॥ मार्कंडिए ऋषि ने धीयया। कैसे

गोविंदा आला रे आलाVerified Lyrics 

गोविंदा आला रे आला ज़रा मटकी सम्भाल बृजबाला गोविंदा आला रे आला ज़रा मटकी सम्भाल बृजबाला अरे एक दो तीन चार संग पाँच छः सात हैं ग्वाला अरे एक दो तीन चार संग पाँच छः सात हैं ग्वाला गोविंदा आला रे आला ज़रा मटकी सम्भाल बृजबाला हे.. हो आई माखन के चोरों की सेना हो

पार्वती जी चालीसा – जय गिरी तनये डग्यगे शम्भू प्रिये गुणखानी।

॥दोहा॥ जय गिरी तनये डग्यगे शम्भू प्रिये गुणखानी। गणपति जननी पार्वती अम्बे! शक्ति! भवामिनी॥ ॥चालीसा॥ ब्रह्मा भेद न तुम्हरे पावे, पांच बदन नित तुमको ध्यावे। शशतमुखकाही न सकतयाष तेरो, सहसबदन श्रम करात घनेरो॥1॥ तेरो पार न पाबत माता, स्थित रक्षा ले हिट सजाता। आधार प्रबाल सद्रसिह अरुणारेय, अति कमनीय नयन कजरारे॥2॥ ललित लालट विलेपित केशर

श्री सरस्वती चालीसा – जनक जननि पद्मरज, निज मस्तक पर धरि।

॥दोहा॥ जनक जननि पद्मरज, निज मस्तक पर धरि। बन्दौं मातु सरस्वती, बुद्धि बल दे दातारि॥ पूर्ण जगत में व्याप्त तव, महिमा अमित अनंतु। दुष्जनों के पाप को, मातु तु ही अब हन्तु॥ ॥चालीसा॥ जय श्री सकल बुद्धि बलरासी। जय सर्वज्ञ अमर अविनाशी॥ जय जय जय वीणाकर धारी। करती सदा सुहंस सवारी॥1॥ रूप चतुर्भुज धारी माता।

श्री लक्ष्मी चालीसा – मातु लक्ष्मी करि कृपा, करो हृदय में वास।

॥दोहा॥ मातु लक्ष्मी करि कृपा, करो हृदय में वास। मनोकामना सिद्घ करि, परुवहु मेरी आस॥ ॥ सोरठा॥ यही मोर अरदास, हाथ जोड़ विनती करुं। सब विधि करौ सुवास, जय जननि जगदंबिका॥ ॥चौपाई॥ सिन्धु सुता मैं सुमिरौ तोही। ज्ञान बुद्घि विघा दो मोही॥ तुम समान नहिं कोई उपकारी। सब विधि पुरवहु आस हमारी॥ जय जय जगत

श्री दुर्गा चालीसा – नमो नमो दुर्गे सुख करनी। नमो नमो दुर्गे दुःख हरनी

नमो नमो दुर्गे सुख करनी। नमो नमो दुर्गे दुःख हरनी॥ निरंकार है ज्योति तुम्हारी। तिहूँ लोक फैली उजियारी॥ शशि ललाट मुख महाविशाला। नेत्र लाल भृकुटि विकराला॥ रूप मातु को अधिक सुहावे। दरश करत जन अति सुख पावे॥1॥ तुम संसार शक्ति लै कीना। पालन हेतु अन्न धन दीना॥ अन्नपूर्णा हुई जग पाला। तुम ही आदि सुन्दरी

श्री साँई चालीसा – श्री साँई के चरणों में, अपना शीश नवाऊं मैं,

श्री साँई के चरणों में, अपना शीश नवाऊं मैं, कैसे शिरडी साँई आए, सारा हाल सुनाऊ मैं कौन है माता, पिता कौन है, यह न किसी ने भी जाना। कहां जन्म साँई ने धारा, प्रश्न पहेली रहा बना कोई कहे अयोध्या के, ये रामचन्द्र भगवान हैं। कोई कहता साँई बाबा, पवन-पुत्र हनुमान हैं कोई कहता