॥दोहा॥ नीलवरण मा कालिका रहती सदा प्रचंड। दस हाथो मई ससत्रा धार देती दुस्त को दांड्ड़॥ मधु केटभ संहार कर करी धर्म की जीत। मेरी भी बढ़ा हरो हो जो कर्म पुनीत॥ ॥चौपाई॥ नमस्कार चामुंडा माता। तीनो लोक मई मई विख्याता॥ हिमाल्या मई पवितरा धाम है। महाशक्ति तुमको प्रडम है॥1॥ मार्कंडिए ऋषि ने धीयया। कैसे
गोविंदा आला रे आला ज़रा मटकी सम्भाल बृजबाला गोविंदा आला रे आला ज़रा मटकी सम्भाल बृजबाला अरे एक दो तीन चार संग पाँच छः सात हैं ग्वाला अरे एक दो तीन चार संग पाँच छः सात हैं ग्वाला गोविंदा आला रे आला ज़रा मटकी सम्भाल बृजबाला हे.. हो आई माखन के चोरों की सेना हो
॥दोहा॥ जनक जननि पद्मरज, निज मस्तक पर धरि। बन्दौं मातु सरस्वती, बुद्धि बल दे दातारि॥ पूर्ण जगत में व्याप्त तव, महिमा अमित अनंतु। दुष्जनों के पाप को, मातु तु ही अब हन्तु॥ ॥चालीसा॥ जय श्री सकल बुद्धि बलरासी। जय सर्वज्ञ अमर अविनाशी॥ जय जय जय वीणाकर धारी। करती सदा सुहंस सवारी॥1॥ रूप चतुर्भुज धारी माता।
नमो नमो दुर्गे सुख करनी। नमो नमो दुर्गे दुःख हरनी॥ निरंकार है ज्योति तुम्हारी। तिहूँ लोक फैली उजियारी॥ शशि ललाट मुख महाविशाला। नेत्र लाल भृकुटि विकराला॥ रूप मातु को अधिक सुहावे। दरश करत जन अति सुख पावे॥1॥ तुम संसार शक्ति लै कीना। पालन हेतु अन्न धन दीना॥ अन्नपूर्णा हुई जग पाला। तुम ही आदि सुन्दरी
श्री साँई के चरणों में, अपना शीश नवाऊं मैं, कैसे शिरडी साँई आए, सारा हाल सुनाऊ मैं कौन है माता, पिता कौन है, यह न किसी ने भी जाना। कहां जन्म साँई ने धारा, प्रश्न पहेली रहा बना कोई कहे अयोध्या के, ये रामचन्द्र भगवान हैं। कोई कहता साँई बाबा, पवन-पुत्र हनुमान हैं कोई कहता