नवरात्रे है जब आते, सब मैया के गुण गाते। हँसते गाते ढोल बजाते, सब है ये ही कहते॥ माँ के दर जाना है, जी माँ के दर जाना है। नवरात्रे है जब आते, पर्वत पर मेले लगते। (नवरात्रे है जब आते, पर्वत पर मेले लगते॥) माँ के जयकारे बोल के प्यारे, सब है ये ही
तेरी रेहमतो का दरिया सरेआम चल रहा है। मुझे भीख मिल रही है मेरा काम चल रहा है। जब तक थी तुम से दुरी, कीमत न कुछ मेरी थी। हुई तुमसे जो मोहब्बत, मेरा नाम बन रहा है। तेरी रेहमतो का दरिया, सरेआम चल रहा है। मुझे भीख मिल रही है, मेरा काम चल रहा
तू किरपा कर बाबा, कीर्तन करवाऊंगा, कीर्तन कराऊँ ऐसा, इतिहास बना दूँँगा। तू किरपा कर बाबा जय हो जय हो… मैं भाई भतीजो के, कुरते सिलवाऊंगा, और बहन बेटियों के, गहने बनवाऊंगा। इत्र की खुशबु से, ये घर महकाऊँगा। कीर्तन कराऊँ ऐसा… मैं फूलों से बाबा, श्रृंगार कराऊंगा, तेरे खातिर सांवरिया, छप्पन भोग बनाऊंगा। मैं
माँ शारदा तुम्हे आना होगा, वीणा मधुर बजाना होगा, मेरे मन मंदिर में मैया आना होगा माँ शारदा तुम्हे आना होगा॥ सा रे ग म प ध नि सा मैया मैं तो जाणू ना, सात स्वरों को मैया मेरी मैं तो पहचानू ना, कीर्तन मैया तुम्हे आना होगा। वीणा मधुर बजाना होगा॥ माँ शारदा तुम्हे
म्हारी कुल री देवी मां, बेटा थारा लाड़ करे। चुनर ल्यायों हूं में मैया, जयपुरिया से जाकर, चारूं कूट में चार मोरिया, गोटा सूं जड़वाकर। थे तो ओढ, ओ थे तो ओढ दिखाओ म्हारी मां, सब मिलकर थारो लाड़ करां। म्हारी कुल री देवी… हीरा जडिया हार मैया जी थारे खातिर लयाया, बिंदिया ल्याया बिछुवा
बांके बिहारी रे दूर करो दुःख मेरा, गिरवरधारी रे दूर करो दुःख मेरा। सुना है जो तेरी शरण में आवे, उसके दुखड़े सब मिट जावे, मैं आई शरण तिहारी रे, बांके बिहारी रे दूर करो दुःख मेरा। सारी दुनिया की ठुकराई अब तो तेरी शरण में आई, मेरी लाज रखो वनवारी रे, बांके बिहारी रे
कैकेई के वचन कठोर, भरत के सुनतहि अंसुआ भर आए, जननी के वचन कठोर, भरत के सुनतहि अंसुआ भर आए॥ धागा हो तो तोड़ दूं मैं, पर वचन न तोड़े जाएं, भरत के सुनतहि अंसुआ भर आए, जननी के वचन कठोर, भरत के सुनतहि अंसुआ भर आए॥ चिठ्ठी जो होती वाच सुनाते, मोसे करम ना
के फागुण महीना लगत ही, हिया मोरा उमंग में, होरी खेले सांवरा, श्री राधा जी के संग में मोहे होरी में कर गयो तंग, ये रसिया माने ना मेरी, माने ना मेरी, माने ना मेरी, मोहे होरी में कर गयो तंग, ये रसिया माने ना मेरी। ग्वाल बालन संग घेर लई मोहे, एकली जान के,
दोहा चार वेद छ: शास्त्रो में, बात मिली है दोय, दुःख दीन्या दुःख होंत है, सुख दीन्या सुख होय। राम नाम के आलसी, और भोजन में होशियार, तुलसी ऐसे मित्र को, मेरा बार बार धिक्कार॥ कबीर कमाई आपणी, कदे न निष्फल जाय, बोया पेड़ बबूल का, तो आम कहा से खाय। बोया जब वो आम