सन्त कहे हरि-भजन करों रे…Verified Lyrics 

Saint Kahe Hari Bhajan Kro Re

टेर:- सन्त कहे हरि-भजन करों रे, लोग मरे रुपियाँ ताईं।
हाय रुपैया होय रुपैया, आग लगी सब जग माही।।

खाऊ-खाऊं करे रात दिन, धर्म-करम शुभ छोड़ दिया।
नाशवान का लिया सहारा हरि से नाता तोड़ दिया।।
उपजा दोश यही से सारा फल लागे अति दुःख दाई।। हाय….

घर-त्यागी क्या ग्रहस्थी देखो, लोलुपता सबके लगी।
अन्न-वस्त्र जल दाता देवे, भीतर भूख नहीं भागी।।
सारा धन मुझको मिल जावे, मिटे नही यह मंगँताई।। हाय….

बड़ा आदमी कौन जगत में, धन से काँटे पर तोले।
धन लेकर बेटा परणावे, लेण-देण पहले खोले।।
स्वारथ अन्धा हो गया जबसों, आगे की सूझत नाही।। हाय….

मान बड़ाई धन कुटुम्ब के, सुख में इतना फूल गया।
मैं हूँ कौन ? कहाँ से आया ? क्या करना यह भूल गया।।
जैसे फिरे बैल घाणी का, आँखों पर पट्टी छाई।। हाय….

अगणित पाप करे धन के हित, बुरा-बुरा व्यवहार करे।
झूठ कपट छल धोखेबाजी, चोरी का व्यवहार करे।।
मरते पाप पाप सँग जावे, मार पड़े जमपुर माहीं।। हाय….

असत वस्तु का छोड़ सहारा, सुख की आशा तजिये रे।
नाशवान तो नाश करेगा, अविनाशी को भजिये रे।।
नर-तन जनम सुफल हो जावे, सतसंगत करिये भाई।। हाय….

सन्त कहे हरि-भजन करों रे, लोग मरे रुपियाँ ताईं।
हाय रुपैया होय रुपैया, आग लगी सब जग माही।।

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