॥दोहा॥ सिर नवाइ बगलामुखी, लिखूं चालीसा आज॥ कृपा करहु मोपर सदा, पूरन हो मम काज॥ ॥चौपाई॥ जय जय जय श्री बगला माता। आदिशक्ति सब जग की त्राता॥ बगला सम तब आनन माता। एहि ते भयउ नाम विख्याता॥ शशि ललाट कुण्डल छवि न्यारी। असतुति करहिं देव नर-नारी॥ पीतवसन तन पर तव राजै। हाथहिं मुद्गर गदा विराजै॥
॥दोहा॥ श्री गणपति गुरु गौरी पद प्रेम सहित धरि माथ। चालीसा वंदन करो श्री शिव भैरवनाथ॥ श्री भैरव संकट हरण मंगल करण कृपाल। श्याम वरण विकराल वपु लोचन लाल विशाल॥ जय जय श्री काली के लाला। जयति जयति काशी- कुतवाला॥ जयति बटुक- भैरव भय हारी। जयति काल- भैरव बलकारी॥ जयति नाथ- भैरव विख्याता। जयति सर्व-
॥दोहा॥ नमो नमो विन्ध्येश्वरी, नमो नमो जगदम्ब। सन्तजनों के काज में करती नहीं विलम्ब। जय जय विन्ध्याचल रानी, आदि शक्ति जग विदित भवानी। सिंहवाहिनी जय जग माता, जय जय त्रिभुवन सुखदाता। कष्ट निवारिणी जय जग देवी, जय जय असुरासुर सेवी। महिमा अमित अपार तुम्हारी, शेष सहस्र मुख वर्णत हारी। दीनन के दुख हरत भवानी, नहिं
॥चौपाई॥ जयति जयति जय ललिते माता। तव गुण महिमा है विख्याता॥ तू सुन्दरी, त्रिपुरेश्वरी देवी। सुर नर मुनि तेरे पद सेवी॥ तू कल्याणी कष्ट निवारिणी। तू सुख दायिनी, विपदा हारिणी॥ मोह विनाशिनी दैत्य नाशिनी। भक्त भाविनी ज्योति प्रकाशिनी॥ आदि शक्ति श्री विद्या रूपा। चक्र स्वामिनी देह अनूपा॥ ह्रदय निवासिनी-भक्त तारिणी। नाना कष्ट विपति दल हारिणी॥
॥दोहा॥ जय जय जय जग पावनी, जयति देवसरि गंग। जय शिव जटा निवासिनी, अनुपम तुंग तरंग॥ ॥चौपाई॥ जय जय जननी हराना अघखानी। आनंद करनी गंगा महारानी॥ जय भगीरथी सुरसरि माता। कलिमल मूल डालिनी विख्याता॥ जय जय जहानु सुता अघ हनानी। भीष्म की माता जगा जननी॥ धवल कमल दल मम तनु सजे। लखी शत शरद चंद्र
॥दोहा॥ बन्दौं सन्तोषी चरण रिद्धि-सिद्धि दातार। ध्यान धरत ही होत नर दुःख सागर से पार॥ भक्तन को सन्तोष दे सन्तोषी तव नाम। कृपा करहु जगदम्ब अब आया तेरे धाम॥ ॥चालीसा॥ जय सन्तोषी मात अनूपम। शान्ति दायिनी रूप मनोरम॥ सुन्दर वरण चतुर्भुज रूपा। वेश मनोहर ललित अनुपा॥1॥ श्वेताम्बर रूप मनहारी। माँ तुम्हारी छवि जग से न्यारी॥