सूरज की गर्मी से जलते हुए तन को मिल जाये तरुवर की छाया, ऐसा ही सुख मेरे मन को मिला है, मैं जब से शरण तेरी आया। मेरे राम॥ भटका हुआ मेरा मन था, कोई मिल ना रहा था सहारा। लहरों से लगी हुई नाव को जैसे मिल ना रहा हो किनारा। इस लडखडाती हुई
सुख के सब साथी, दुःख में ना कोई। मेरे राम, मेरे राम, तेरा नाम एक सांचा दूजा ना कोई॥ जीवन आणि जानी छाया, जूठी माया, झूठी काय। फिर काहे को साड़ी उमरिया, पाप को गठरी ढोई॥ ना कुछ तेरा, ना कुछ मेरा, यह जग योगी वाला फेरा। राजा हो या रंक सभी का, अंत एक
सीताराम सीताराम सीताराम कहिये, जाहि विधि राखे राम ताहि विधि रहिये।। ◾️ ज़िन्दगी की डोर सौंप हाथ दीनानाथ के, महलों मे राखे चाहे झोंपड़ी मे वास दे, धन्यवाद निर्विवाद राम राम कहिये, जाहि विधि राखे राम ताहि विधि रहिये।। ◾️ किया अभिमान तो फिर मान नहीं पायेगा, होगा प्यारे वही जो श्री रामजी को भायेगा,
सीता राम जी प्यारी, राजधानी लागे, राजधानी लागे, मोहे मिठो मिठो, सरयू जी रो पानी लागे।। ◾️ धन्य कौशल्या धन्य कैकई, धन्य सुमित्रा मैया, धन्य कौशल्या धन्य कैकई, धन्य सुमित्रा मैया, धन्य भूप दशरथ के अँगना, खेलत चारो भैया, मीठी तोतली रसीली प्रभु की, बानी लगे प्रभु की बनी लागे, मोहे मिठो मिठो, सरयू जी
श्री राम जानकी बैठे हैं मेरे सीने में, देख लो मेरे मन के नागिनें में। मुझ को कीर्ति न वैभव न यश चाहिए, राम के नाम का मुझ को रस चाहिए। सुख मिले ऐसे अमृत को पीने में, श्री राम जानकी बैठे हैं मेरे सीने में॥ ◾️ अनमोल कोई भी चीज मेरे काम की नहीं,
श्री रघुवर कोमल कमलनयन को, पहनाओ जयमाला। यह पुण्य महूर्त स्वर्णिम अवसर, फिर नहीं आने वाला पहनाओ जयमाला। श्री रघुवर कोमल कमलनयन को, पहनाओ जयमाला। पहनाओ जयमाला। ◾️ दो चार चरण चलते चलते, श्री रघुवर तक ऐसे पहुंचे जो छुईमुई के पल्लव हो, सिमटे सिमटे सकुचे सकुचे श्री राम चकित चित में सीता का, अदभुत
वन वन भटके राम, वन वन भटके राम।। चौपाई– आश्रम देखि जानकी हीना। भए बिकल जस प्राकृत दीना।। ◾️ विरह व्यथा से, व्यतीत द्रवित हो, बन बन भटके राम, बन बन भटके राम, अपनी सिया को, प्राण पिया को, पग पग ढूंढे राम, विरह व्यथा से, व्यतीत द्रवित हो,बन बन भटके राम, बन बन भटके