दोहा : जगमग ज्योत जगे नित तेरी हुआ अँधेरा नाश, भगतों के घर हुई रोशनी, मेरी भी पुरो आस। टेर : जलती रहे बजरंग बाला ज्योत तेरी जलती रहे। किसने ओ बाबा तेरा भवन बनाया किसने चवर झुलाया। ज्योत तेरी….. भगतों ने बाबा तेरा भवन बनाया सेवक चवर झुलाया ज्योत तेरी….. लाल सिंदूर बाबा अंग
हम लाये है आपके लिए प्रभु श्री राम जी का बहुत ही प्यारा भावपूर्ण भजन भक्तों को भाव विभोर करने के लिए श्री रामचंद्र जी का बहुत सुन्दर भजन के लिरिक्स। जय श्री राम। दोहा : मनका फेरत जुग भया, फिराना मन का फेर, कर का मनका डार दे मनका मनका फेर। टेर : मुझे
टेर : माया कोणी चले सागे रे, दया धर्म पुण्यदान भजन कर मिलसी आगे रे। पिछले जन्म में करी कमाई लगा रहा घर में ठाट, बिना भजन जो आये जगत में रहे है विपदा काट। माया कोणी….. मात पिता की सेवा कर ले, नित उठ ले आशीष, घर आँगन में मौज मनाओ सत्य है बिसवा
टेर : रुकमणी जीमण दे मने, भक्तों का प्रशाद, प्रेम वाला भोजन ऐ मने, लगे बड़ा स्वाद।। काचे चावल मत ना खाओ, कर से कृपा निधान। कच्चे-कच्चे चावलों से पेट दुखेगा कहा मेरा ले मान।। रुकमणी जीमण दे…. धन्ने भगत की गउए चराई, बाजरे की रोटियां खाई। अपने भक्त के खेत बाजरी, बिना बीज निप
Aao Ram ji Bhog Lagavo, Nij Bhakto ka Maan Badao. टेर : आओ राम जी भोग लगावो, निज भक्तों का मान बढ़ाओ। दुर्योधन का मेवा त्यागा, साग विदुर के घर खाओजी। कैरव कुल के घट की जानी, भगत को मान बढ़ायो।। आओ राम जी….. कर्मा के घर खीचड़ खायो, रुच रुच भोग लगायो जी। कई
दोहा : कबीरा सुता क्या करें जागन जपे मुरार। एक दिन तो है सोवना लम्बे पाँव पसार।। टेर : घणा दिन सो लियो रे अब तो जाग मुसाफिर जाग। पहले सोयो माता के गर्भ में उल्टा पांव पसार। भीतर से जब बाहर आया भूल्या कोल करार।। जन्म तेरी हो लियो रे दूजा सोया गोद माता
दोहा : राम भजन में आलसी, भोजन में होशियार। तुलसी ऐसे जीव को बार बार धिकार।। टेर : तूं तो हीरो सो जन्म गँवायो, भजन बिना बावरा। कड़े न आयो साध सांगत में कड़े न हरि गुण गायो। पच पच मरयो बैल की नांई सोय रहो उठ खायो।। ये संसार हाट बणिये की सब जग
दोहा : कबीरा सब जग निर्धना धनवंता ना कोय। धनवंता सोई जानिए जाके राम नाम धन होय।।टेर : बांगा दर्शन खोटा रे, जीका कदे राम नाम न भजे। तीखा तीखा तिलक लगावे लम्बा राखे चोटा। राम नाम तो आव कोणी कर्म कमावे खोटा।।बांगा दर्शन…..साधु बन मंदिर में बैठे नाम कढाव मोटा।राम नाम तो लेवे कोणी
टेर : भजले मन मेरा शंकर दीनदयाल । शीश ऊपर बहती, जिनके गंगाजी की धार है,मारती हिलोरे नर, नैया बेडा पार है गले बीच शेष सोहे, सर्पों का हर है भस्मी रमावे शिव, गले मुंड माल है डमरू बजावे भोला, बैल पर असवार है बाएं अंग पार्वती शोभा, अपमम्पार है। सच्चा तो सुनता सवाल क्रोध