॥ दोहा ॥ मात-पिता परमात्मा, पति सेवा गुरु ज्ञान। इनसे हिल मिल चालिए, वो नर चतुर सुजान॥ मात-पिता सूं दगो करेला, चार जनम दुख पावे। लख चौरासी फिरे भटकतो, सीधो नरक में जावे रे, मनवा , इतरो क्यूं इतरावे॥ पेला रे जनम में बणे बलधियो, पकड़ तेली घर लावे। आँख्या रे थारे पाटो बांध ने,