भरत म्हारे कपि जी से अंतर नाहीं, तु मत जिम भलई भरत म्हारे, कपि जी से अंतर नाहीं। जुठेड़ो जीमे अछूतो जिमावे, हाथ धोवे सरयू माइ, हनुमत म्हारे प्राणा से प्यारों, तु मात जिम भलई। १००(सौ) योजन मर्याद समुद्र की, कूद गयो पल माइ, लंका जाये सिया सुधी ल्यायो, गर्ब(घमंड) नहीं मन माइ। शक्तिबाण लग्यो
चाल सखी सत्संग में चाला, सत्संग में माधव आसी, राम गुण रामगुण गावो म्हारी, सजनी नहि तो जुगड़ा में बैज्यासी। ब्रह्मा आसी विष्णु आसी, शंकर आसी बाबों कैलाशी, सुंड सुण्डाल्यो बाबो गणपत आसी, संग में आ गौरजा माँ आसी।। राम लक्ष्मण दशरथजी का लड़का, माधो वन को वनवासी, हनुमान सा पायक आसी, संग में आ
भिड़ चढ़ो बलकारी म्हारे, आयो शरण तुम्हारी, बजरंग राखो लाज हमारी… अंजनी को पुत्र रामजी को पायक,शंकर के अवतारी, दानव सारा मार भगाया,भक्तों के हितकारी ||1|| भिड़ चढ़ो बलकारी म्हारे… रावण का दस मस्तक छेद्या,बीस्यूं भुजा उखाड़ी, लंका जीत आयोध्या में आये,घर घर मंगला गाई ||2|| भिड़ चढ़ो बलकारी म्हारे… जंगल तुम मंगल किन्हा,धाम बनी