॥दोहा॥ जय गिरी तनये डग्यगे शम्भू प्रिये गुणखानी। गणपति जननी पार्वती अम्बे! शक्ति! भवामिनी॥ ॥चालीसा॥ ब्रह्मा भेद न तुम्हरे पावे, पांच बदन नित तुमको ध्यावे। शशतमुखकाही न सकतयाष तेरो, सहसबदन श्रम करात घनेरो॥1॥ तेरो पार न पाबत माता, स्थित रक्षा ले हिट सजाता। आधार प्रबाल सद्रसिह अरुणारेय, अति कमनीय नयन कजरारे॥2॥ ललित लालट विलेपित केशर