आर बाबा पार बाबा, म्हारे घरा आओ एक बार बाबा, सुन्दर तेरी छवि प्यारी, जाऊं मैं तो वारी वारी, करके लीले की असवारी मेरे श्याम… म्हारे मन में घणो चाव थे म्हारे घरा भी आओ, म्हें थारा श्रृंगार करां थे सज धज के इतराओ, फूला रो मैं हार बनावां थाने जचां जचां पेहरावां, सोना सा
मेरी जो लाज है बाबा तेरे हाथ है, दुखियाँ गरीब की बाबा फर्याद है, आंधी तूफ़ान आये नाइयाँ हिचकोले खाये, तेरे भरोसे बैठा नैया न दुब जाए, अंधरै रात है ना कोई साथ है, दुखियाँ गरीब की बाबा फर्याद है, मेरी जो लाज तेरे हाथ….. हम तो कमजोर है तेरा ही जोर है, दुनिया में
मेरी हर मुश्किल का हल, बन जाता तू ही है, उलझन भी मेरी हर पल, सुलझाता तू ही है, मेरा तो बस श्याम, सहारा तू ही है, मेरा तो बस श्याम, सहारा तू ही है।। ऐसा साथी मिलना तो, है किस्मत की बात, अब काहे का डरना बाबा, जब तू मेरे साथ, जबतक मेरे तन
मतलब की इस दुनिया से मुझको तो नफरत है, ओ सँवारे, मुझे तेरी जरुरत है, जैसे जैसे काम तूने किए मेरे बाबा, मैं ही तो बस जानू ये, तेरे सिवा दुनिया में कोई न हमारा, मैं ही तो बस जानू ये, सांवरिया..मैं ही तो बस जानू ये खाटू वाले श्याम धनि से, मुझको मोहब्बत है,
श्याम तेरी मूर्ति को फूलों से सजाया है, आजा खाटू वाले तुझको, दास ने बुलाया है, श्याम तेरी मूर्ति को फूलों से सजाया है॥ चरणों में बैठ तेरे ज्योत ये जगाई है, राहों में तेरी बाबा पलकें बिछाई है। श्रद्धा और भाव का ये आसन सजाया है, आजा खाटू वाले तुझको, दास ने बुलाया है॥
भोला भाला मुखड़ा है चाल मतवाली, अपने भक्तो की बाबा करे रखवाली, लाखो दीवानो को सँभालने वो आया है, वो देखो श्याम बाबा नीले चढ़ आया है। श्याम पे भरोसा कर जब तू आया है, याद रख श्याम की नजर में भी आया है, दिल से पुकार दर्शन देने आया है, वो देखो श्याम बाबा
जब फागुन मेला आए, श्री श्याम ध्वजा लहराये, कोई ये तो बताये मुझे ये काया हुआ है, ओ मेरा दिल क्यों मचला जाये, जब फागुन… रंग रंगीला फागण महीना मेरे मन को भाये, रात या दिन हो हर पल मुझको तेरी याद ही आये, कोई ये तो बताये मुझे ये क्या हुआ है, हो मेरा
घणी दूर से दोड्यो, थारी गाडुली के लार……., गाडी में बिठाले रे… बाबा, जाणो है नगर अंजार… नरसी बोल्यो म्हारे सागे के करसी…. ओढ़न कपडा नाही बैठ सियां मरसि…. बूढ़ा बैल टूटेड़ी गाडी पैदल जावे हार…. गाडी में बिठाले रे बाबा जाणो है नगर अंजार….. ज्ञान दासजी कहवे….. गाडुली तोड़ेला… ज्ञान दासजी कहवे तुमड़ा फ़ोड़ेला…….
टेर : सुमिरण करले मेरा मना बीती उम्र हरि नाम बिना। हस्ती दन्त बिना, पंछि पंख बिना, जिमि राहगीर है पथ बिना। वैश्या का पुत्र पिता बिन हिना, जिमि प्राणी हो प्राण बिना।। सुमिरण करले…… धेनु क्षीर नदियाँ नीर बिन, जैसे नारी पुरुष बिना। जैसे तरवर फल बिन सुना, जिमि धरती रहे मेघ बिना।। सुमिरण