जल रही है राह का बन कर दिया जाने कितनी रातो से तेरी सिया खो के बैठी खुद में तुमको राम जी अपनी खातिर तो मैं हूँ बस नाम की आँखे मेरी रात दिन बरसा करे इक झलक पाने को बस तरसा करे काली रातो की सुभह भी आएगी एक दिन जीवन में खुशिया छायेंगी
दो है काया एक प्राण की जहाँ राम हैं वहीँ जानकी दो है काया एक प्राण की जहाँ राम हैं वहीँ जानकी जहाँ राम हैं वहीँ जानकी जहाँ राम हैं वहीँ जानकी॥ प्रभु जी आप हैं अंतर्यामी मन की व्यथा को समझे स्वामी हे नाथ सुनले अंतर्वाणी हे नाथ सुनले अंतर्वाणी साथी बना ले वन-उपवन
जरा देर ठहरो राम, तमन्ना यही है, अभी हमने जी भर के, देखा नहीं है।। कैसी घडी आज, जीवन की आई, अपने ही प्राणो की, करते विदाई, अब ये अयोध्या, अब ये अयोध्या हमारी नहीं है, अभी हमने जी भर के, देखा नहीं है।। माता कौशल्या की, आँखों के तारे, दशरथ जी के हो, राज
जय रघु नायक नाम हितकारी सुमिरन तेह सदा सुखकारी राम राम राम राम राम राम॥ सोवत भाग्य तुरत ही जागे सुमिरत राम नाम दुःख भागे राम राम राम राम राम राम॥ दशरथ के सुत लक्ष्मण रामा जग जानत हैं तुम्हरे नामा राम राम राम राम राम राम॥ विश्वामित्र और गुरु वशिष्ठ ज्ञान ध्यान की दिए
क्षमा करो तुम मेरे प्रभुजी, अब तक के सारे अपराध धो डालो तन की चादर को, लगे है उसमे जो भी दाग क्षमा करो.. तुम तो प्रभुजी मानसरोवर, अमृत जल से भरे हुए पारस तुम हो, इक लोहा मै, कंचन होवे जो ही छुवे तज के जग की सारी माया, तुमसे कर लू मै अनुराग
दोहा: पूजा जप ताप मैं नहीं जानू, मै नहीं जानू आरती। राम रतन धन पाकर के मै प्रभु का नाम पुकारती॥ कलिओं मे राम मेरा, किरणों मे राम है। धरती गगन मे मेरे प्रभु का धाम है॥ कहाँ नहीं राम है… प्रभु ही की धूप छाया, प्रभु की ही चांदनी। लहरों की वीना मे है
कभी कभी भगवान् को भी भक्तों से काम पड़े। जाना था गंगा पार प्रभु केवट की नाव चढ़े॥ अवध छोड़ प्रभु वन को धाये, सिया राम लखन गंगा तट आये। केवट मन ही मन हर्षाये, घर बैठे प्रभु दर्शन पाए। हाथ जोड़ कर प्रभु के आगे केवट मगन खड़े॥ प्रभु बोले तुम नाव चलाओ, अरे
कभी राम बन के कभी श्याम बन के, चले आना प्रभु जी चले आना, तुम राम रूप में आना,-2 सीता साथ लेके धनुष हाथ लेके, चले आना प्रभु जी चले आना कभी राम बन … तुम श्याम रूप में आना,-2 राधा साथ लेके मुरली हाथ लेके, चले आना प्रभु जी चले आना कभी राम बन
ओ मईया तैने का ठानी मन में, राम-सिया भेज दइ री वन में -2 हाय री तैने का ठानी मन में, राम-सिया भेज दइ री वन में -2 यधपि भरत तेरो ही जायो, तेरी करनी देख लज्जायो, अपनों पद तैने आप गँवायो। भरत की नजरन में, राम-सिया भेज दइ री वन में, हठीली तैने का
ऐ मालिक तेरे बंदे हम, ऐसे हो हमारे करम नेकी पर चले और बदी से टले, ताकी हसते हुये निकले दम ऐ मालिक तेरे बंदे हम बड़ा कमजोर है आदमी, अभी लाखों हैं इस में कमी पर तू जो खड़ा, है दयालू बड़ा, तेरी किरपा से धरती थमी दिया तूने हमें जब जनम, तू ही