॥ दोहा ॥ बीरां म्हारा रामदेव, नेतल रा भरतार। आ सुगणा री वीणती, एकर लेवण आय॥ सुगणा रे ऊभी डागळिये, नेणां में ढळके नीर। लेवण आवो वीरा रामदेव, थे हो जग में पीर ॥ आवण – जावण कह गया रे, आई रे सावणियाँ री तीज, दर्शण प्यासी सुगणा बाई, होवे है आधीन॥ सुगणा रे ऊभी