शब्द की चोट लगी मेरे मन को, भेद गया ये तन सारा, हो मोपे साईं रंग डारा। सतगुरु हो महाराज, हो मोपे साईं रंग डारा। कण कण में जड़ चेतन में, मोहे रूप दिखे इक सुंदर, जिस के बिन मैं जी नहीं पाऊँ, साईं बसे मेरे अंदर, पूजा अर्चन सुमिरन कीर्तन, निस दिन करता रहता,