हरो विघन सब दूर गजानन्द, गोरी के लाला, अब हरो विघन सब दूर गजानन्द, गोरी के लाला। माथे पर तेरे तिलक बिराजे, सिर पर मुकुट सलोना साजे, शोभा काम निरख कर लाजे, गल मोतियन माला। देख चतुर्भुज रूप तिहारा, हमरे मन में हो उजियारा, भागे दूर विघन अंधियारा, कोटि विघन टाला। मूषक की असवारी सोहे,
– श्लोक – गजानंद आनंद करो, दो सुख सम्पति में शीश, दुश्मन को सज्जन करो, निवत जिमावा खीर। सदा भवानी दाहिनी, सनमुख रहत गणेश, पाँच देव रक्षा करे, ब्रम्हा विष्णु महेश। विघ्न हरण मंगल करण, गणनायक गणराज, रिद्धि सिद्धि सहित पधारजो, म्हारा पूरण कर जो काज।। गौरी के नंदा गजानन, गौरी के नन्दा, म्हने बुद्धि
गणराज विनायक आओ, म्हारी सभा में रंग बरसाओ, महाराज विनायक आओ, म्हारी सभा में रंग बरसाओ।। रणत भवन से आवो नी गजानन, संग में रिद्धि सिद्धि ल्यावो, महाराज विनायक आओ, म्हारी सभा में रंग बरसाओ। गणराज विनायक आवो, म्हारी सभा में रंग बरसाओ, महाराज विनायक आओ, म्हारी सभा में रंग बरसाओ।। ब्रम्हा जी आवो देवा