कभी फुर्सत हो तो जगदम्बे, निर्धन के घर भी आ जाना। (कभी फुर्सत हो तो जगदम्बे, निर्धन के घर भी आ जाना) जो रूखा सूखा दिया हमें, कभी उस का भोग लगा जाना॥ कभी फुर्सत हो तो जगदम्बे, निर्धन के घर भी आ जाना। ना छत्र बना सका सोने का, ना चुनरी घर मेरे तारों