भक्त खड़े तेरे द्वार दर्शन पाने के लिए। आ जावी एकबार दर्श दिखाने के लिए।। बजरंग बाला दीं दयाला तूँ रखवाला तुन रखवाला। भक्तों की प्रतिपाल करे तूँ ऐसा है मतवाला।। आते हैं हर बार बार प्यार जताने के लिए।।1।। गहरी गहरी नदिया दूर किनारा दे दो सहारा दे दो सहारा। झूठे जग में तेरे
बाला मैं तो दीवाना तेरा। तेरा दरबार है घर मेरा।। साडी दुनिया ये कुछ भी कहे। छोड़ू दर न कभी ये तेरा।। आया मैं दर पे जब पहली बार, देखा जग से नया चमत्कार। जग ने मुझे डराया, मगर खींच लाया तेरा प्यार। संकटो ने मुझे है घेरा।।1।। तेरे दरबार कि क्या कहूं, दिल करता
बजरंगी लाल बेड़ो पर कर दे रे। प्यार वालो हाथ सर पे धर दे रे। बड़े बड़े पापियों की बिगड़ी बनाई। मेरा भी पाप सारा हर ले रे।।1।। रावण जैसे पापी को मारा। मेरा भी पाप क्या जबर है रे।।2।। तेरे दर को छोड़कर और कहाँ जाऊँ। तेरे चरणों में मेरो घर है रे।।3।। दास
बजरंग बली मुझ पर थोड़ी सी दया कर दो। खाली है मेरी झोली इसको भी जरा भर दो।। तेरे द्वार पे आये है बजरंग मेहर करो। दुखों से भरा जीवन सुख के भण्डार भरो।। काँटों से भरा पथ है फूलों की डगर करो।।1।। माँ अंजनी के जाये शंकर के अवतारी। तेरी लीला को जाने कोई
बजरंग बली तेरे भक्तों का, तुझसे ही गुजारा चलता है। जो द्वार तेरे पे आ ना सका, वह रह रह कर मरता है। तेरे द्वार पे हर दम आते हैं, तेरा दर्शन करके जाते हैं। जो सोच सोच कर रह जाते, वो जीवन भर पछताते हैं। भक्तों का दीवानापन क्या कहुँ, मन हरोल रहे मचलाता
जय जय बाला दीनदयाला तेरे बिना कोई और नहीं। तेरे दर पर आने गिरे हैं जग में मुझको छोड़ नहीं। मेरे तन मन बालाजी तेरे चरणों पर बलिहारी हैं। मैंने अर्जी पेश करी अब आकर मर्जी थारी है। दया करो हे बजरंग बाला जग पे मेरा जोर नहीं।।1।। ना जानू मैं सेवा पूजा भक्ति भाव
दरबार तेरा निराला तुम्हें अंजनी का लाला। अंजनी का लाला तू है अंजनी का लाला।। तूँ है निराला तेरी महिमा निराली। दर पर जो आए कोई बन के सवाली।। उसके संकट को तूने टाला।।1।। मंदिर निराले तेरे सेवक निराले। मन में करे है तू ही सबके उजाले।। हमने तो तेरे दर पर डेरा डाला ।।2।।
फरियाद दुखी दिल की तुमको ही सुनाऊंगा। बजरंग तेरे दर बिन किस दर पर जाऊंगा। मिलकर तेरी दुनिया ने मुझको बड़ा लुटा है। सुंदरता के पोछे सब नाटक झूठा है। भटका हूँ मैं राहों से कब मंजिल पाऊंगा।।1।। अँखिया तेरे बिरहा में दिन रात बरसती है। तेरे दर्शन पाने को सदियों से तरसती है। रहमत
गर हो तेरी दया का इशारा। डूबता हो कोई मिलता पल भर में उसको किनारा। ग्राह गज में हुई थी लड़ाई। गज ने आवाज तुमको लगाई। गर न होती दया मारा जाता वो गजराज बेचारा। शिवरी देखे थी बाट तिहारी। राह में निशदिन लगाती बुहारी। जो ही दर्शन किये कर गई पल भर में जग
ए मेहंदीपुर के बालाजी, कभी मेरे घर भी आ जाना। मैं दास आपका जन्मों से, आकर धीर बंधा जाना।। तेरे रोज सवामण भोग लगे, नित खीर चूरमा खाये तूँ। मेरे पास तो रूखी सूखी है, निर्धन के घर नहीं आये तूँ। अब और सहा नहीं जाता है, दर्शन दे धन्य बना जाना।।1।। सोना चांदी के