कैकेई के वचन कठोर, भरत के सुनतहि अंसुआ भर आए, जननी के वचन कठोर, भरत के सुनतहि अंसुआ भर आए॥ धागा हो तो तोड़ दूं मैं, पर वचन न तोड़े जाएं, भरत के सुनतहि अंसुआ भर आए, जननी के वचन कठोर, भरत के सुनतहि अंसुआ भर आए॥ चिठ्ठी जो होती वाच सुनाते, मोसे करम ना