कभी कभी भगवान् को भी भक्तों से काम पड़े। जाना था गंगा पार प्रभु केवट की नाव चढ़े॥ अवध छोड़ प्रभु वन को धाये, सिया राम लखन गंगा तट आये। केवट मन ही मन हर्षाये, घर बैठे प्रभु दर्शन पाए। हाथ जोड़ कर प्रभु के आगे केवट मगन खड़े॥ प्रभु बोले तुम नाव चलाओ, अरे