दुःख सुख दोनो कुछ पल के, कब आये कब जाये
Duhkh Sukh Dono Kuchh Pal Ke, Kab Aaye Kab Jaaye
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Singer(गायक): अनूप जलोटा
दुःख सुख दोनो कुछ पल के
कब आये कब जाये
दुःख है ढलते सूरज जैसा
शाम ढले ढल जाये
दुःख सुख दोनो कुछ पल के
कब आये कब जाये
दुःख है ढलते सूरज जैसा
शाम ढले ढल जाये
हो.. शाम ढले ढल जाये
दुःख तो हर प्राणी को होय
राम ने भी दुःख झेला
धैर्य प्रेम से वन में रहे
प्रभु चौदह वर्ष की बेला
गर्मी में नदिया है खाली
सावन में जल आये
दुःख है ढलते सूरज जैसा
शाम ढले ढल जाये
हो.. शाम ढले ढल जाये
दुःख सुख दोनो कुछ पल के
कब आये कब जाये
दुःख है ढलते सूरज जैसा
शाम ढले ढल जाये
हो.. शाम ढले ढल जाये
प्रभु का सुमिरन जिसने करके
हर संकट को खेला
असली जीवन उसका समझो
ये जीवन का मेला
रात अँधेरी भोर में सूरज
ऐसा फिर कल आये
दुःख है ढलते सूरज जैसा
शाम ढले ढल जाये
हो.. शाम ढले ढल जाये
दुःख सुख दोनो कुछ पल के
कब आये कब जाये
दुःख है ढलते सूरज जैसा
शाम ढले ढल जाये
आये परीक्षा दुःख के क्षण में
मन तेरा घबराये
सह सह के दुःख सहा ना जाये
अंखियाँ भर भर जाये
राम का सुमिरन नारायण कर
बजरंगी बल आये
दुःख है ढलते सूरज जैसा
शाम ढले ढल जाये
हो.. शाम ढले ढल जाये
दुःख सुख दोनो कुछ पल के
कब आये कब जाये
दुःख है ढलते सूरज जैसा
शाम ढले ढल जाये
हो.. शाम ढले ढल जाये
शाम ढले ढल जाये
हो.. शाम ढले ढल जाये
शाम ढले ढल जाये
हो.. शाम ढले ढल जाये
शाम ढले ढल जाये