दोहा : शरण शरण मैं आपकी, महावीर हनुमान, शरण पड़े को आन उबारों, पवन पुत्र बलवान। टेर : ओ महावीर बजरंगी, मैं आया शरण तिहारी। शरण तिहारी मैं आया हूँ, संग में संकट लाया हूँ, अनजाने में फिरा भटकता, पहले बहुत दुःख पाया हूँ, अब संकट हर ले मेरा, ओ संकट मेटन हारी । ओ
जय जय कपि नायक जन, सुखदायक महावीर बलवाना, जय संकट मोचन भव भय मोचन, मंगल भवन सुजाना ।।1।। जय जय दुःख हारक जन उपकारक, परमानन्द निधाना, जय जय अविनाशी आनंद राशि, पवन तनय हनुमाना ।।2।। जय परम कृपाला नयन विशाला, सुर नर मुनि हितकारी, जय सब गुण सागर दीन-दयाकर, पापन के अघहारी ।।3।। जय अधत
किसी भी उत्सव, कार्य, कीर्तन, जागरण की शुरुवात करने से पहले गणेश भगवान को मनाया जाता है। आज हम लेकर आये है गणेश जी बहुत ही प्यारी वंदना जिसके गायन से गणेश भगवान निश्चित रूप से आपके कार्य/कीर्तन को सफल करेंगे और रिद्धि सिद्धि के भण्डार भरेंगे। ॐ गणपते: नम: दोहा : गजानंद आनंद करो,
भरोसा कर तू ईश्वर पर, तुझे धोखा नहीं होगा । यह जीवन बीत जायेगा, तुझे रोना नहीं होगा ॥ कभी सुख है कभी दुख है, यह जीवन धूप-छाया है । हँसी में ही बिता डालो, बिताना ही यह माया है ॥ जो सुख आवे तो हंस लेना, जो दुःख आवे तो सह लेना । न
तेरे बिन झूठा है ए संसार माता झूठे रिश्ते सारे झूठा परिवार माता सब मतलब दे साथी इथे कोई ना मेरा है जो साथ निभावे गा तेरे बिन केह्दा है घरजा दे नाल करदे लोकी प्यार माता तेरे बिन झूठा है ए संसार माता……. इथे विषय विकारा दे बड़े चमेले ने सब मोह माया दे
कान्हा रे कान्हा तुझे किस ने है जाना इक मीरा ने जाना तुझे राधा ने जाना कान्हा रे कान्हा तुझे किस ने है जाना तूने गैयाँ चराई तूने माखन चुराया तूने जिसका भी खाया उस का भेभव बडाया ये सुदामा ने देखा जमाने ने जाना कान्हा रे कान्हा तुझे किस ने है जाना तूने रास
तेरी छाया में तेरे चरणो में, मगन हो बैठु तेरे भक्तों में॥ तेरे दरबार में मैया ख़ुशी मिलती है-२ जिंदगी मिलती है रोतो को हसी मिलती है॥ तेरे दरबार में मैया ख़ुशी मिलती है-२ जिंदगी मिलती है रोतो को हसी मिलती है॥ एक अजब सी मस्ती तन मन पे छाती है-२ हर एक जुबां तेरे
मन तड़पत हरि दर्शन को आज मोरे तुम बिन बिगड़े सकल काज विनती करत हूँ रखियो लाज ॥ मन तड़पत हरि…॥ तुम्हरे द्वार का मैं हूँ जोगी हमरी ओर नज़र कब होगी सुन मोरे व्याकुल मन का बात ॥ मन तड़पत हरि…॥ बिन गुरू ज्ञान कहाँ से पाऊँ दीजो दान हरी गुन गाऊँ सब गुनी
प्रबल प्रेम के पाले पड़कर, प्रभु को नियम बदलते देखा। अपना मान भले टल जाये, भक्त मान नहीं टलते देखा। जिसकी केवल कृपा दृष्टि से, सकल विश्व को पलते देखा। उसको गोकुल में माखन पर, सौ-सौ बार मचलते देखा। जिसके चरण कमल कमला के, करतल से न निकलते देखा। उसको ब्रज की कुंज गलिन में,