॥दोहा॥ नीलवरण मा कालिका रहती सदा प्रचंड। दस हाथो मई ससत्रा धार देती दुस्त को दांड्ड़॥ मधु केटभ संहार कर करी धर्म की जीत। मेरी भी बढ़ा हरो हो जो कर्म पुनीत॥ ॥चौपाई॥ नमस्कार चामुंडा माता। तीनो लोक मई मई विख्याता॥ हिमाल्या मई पवितरा धाम है। महाशक्ति तुमको प्रडम है॥1॥ मार्कंडिए ऋषि ने धीयया। कैसे
॥दोहा॥ जनक जननि पद्मरज, निज मस्तक पर धरि। बन्दौं मातु सरस्वती, बुद्धि बल दे दातारि॥ पूर्ण जगत में व्याप्त तव, महिमा अमित अनंतु। दुष्जनों के पाप को, मातु तु ही अब हन्तु॥ ॥चालीसा॥ जय श्री सकल बुद्धि बलरासी। जय सर्वज्ञ अमर अविनाशी॥ जय जय जय वीणाकर धारी। करती सदा सुहंस सवारी॥1॥ रूप चतुर्भुज धारी माता।
श्री साँई के चरणों में, अपना शीश नवाऊं मैं, कैसे शिरडी साँई आए, सारा हाल सुनाऊ मैं कौन है माता, पिता कौन है, यह न किसी ने भी जाना। कहां जन्म साँई ने धारा, प्रश्न पहेली रहा बना कोई कहे अयोध्या के, ये रामचन्द्र भगवान हैं। कोई कहता साँई बाबा, पवन-पुत्र हनुमान हैं कोई कहता
॥दोहा॥ विष्णु सुनिए विनय सेवक की चितलाय। कीरत कुछ वर्णन करूं दीजै ज्ञान बताय॥ ॥चौपाई॥ नमो विष्णु भगवान खरारी,कष्ट नशावन अखिल बिहारी। प्रबल जगत में शक्ति तुम्हारी,त्रिभुवन फैल रही उजियारी॥1॥ सुन्दर रूप मनोहर सूरत,सरल स्वभाव मोहनी मूरत। तन पर पीताम्बर अति सोहत,बैजन्ती माला मन मोहत॥2॥ शंख चक्र कर गदा बिराजे,देखत दैत्य असुर दल भाजे। सत्य
॥दोहा॥ जय गणेश गिरिजा सुवन, मंगल करण कृपाल। दीनन के दुःख दूर करि, कीजै नाथ निहाल॥ जय जय श्री शनिदेव प्रभु, सुनहु विनय महाराज। करहु कृपा हे रवि तनय, राखहु जन की लाज॥ ॥चौपाई॥ जयति जयति शनिदेव दयाला। करत सदा भक्तन प्रतिपाला॥ चारि भुजा, तनु श्याम विराजै। माथे रतन मुकुट छवि छाजै॥ परम विशाल मनोहर
जय जय हे शनि राज देव तेरी जय जय कार, तू ही मेरी सुख शांति है तू ही मेरा आधार। जय जय हे शनि राज देव, तेरी जय जय कार, तू ही मेरी सुख शांति है तू ही मेरा आधार। जय जय हे शनि राज देव तेरी जय जयकार-२ जय जय हे शनि राज देव
भला किसी का कर ना सको तो, बुरा किसी का ना करना। पुष्प नहीं बन सकते तो तुम, कांटे बन कर मत रहना॥ बन ना सको भगवान् अगर, कम से कम इंसान बनो। नहीं कभी शैतान बनो, नहीं कभी हैवान बनो॥ सदाचार अपना न सको तो, पापों में पग ना धरना। पुष्प नहीं बन सकते