जिसकी लागी रे लगन भगवान में, उसका दिया रे जलेगा तूफान में।। तन का दीपक मन की बाती, हरी भजन का तेल रे, काहे को तू घबराता है, ये तो प्रभु का खेल रे, जिसकी लागी रे लगन भगवान मे, उसका दिया रे जलेगा तूफान में।। काहे को तू भूल के बैठा, भज ले श्री
ठुमक चलत रामचंद्र, बाजत पैंजनियां। किलकि किलकि उठत धाय, गिरत भूमि लटपटाय। धाय मात गोद लेत, दशरथ की रनियां। अंचल रज अंग झारि, विविध भांति सो दुलारि। तन मन धन वारि वारि, कहत मृदु बचनियां। विद्रुम से अरुण अधर, बोलत मुख मधुर मधुर। सुभग नासिका में चारु, लटकत लटकनियां। तुलसीदास अति आनंद, देख के मुखारविंद।
जिस भजन में राम का नाम ना हो, उस भजन को गाना ना चाहिए। जिस भजन में राम का नाम ना हो, उस भजन को गाना ना चाहिए। चाहे बेटा कितना प्यारा हो, उसे सर पे चढ़ाना ना चाहिए। चाहे बेटी कितनी लाडली हो, घर घर में घुमाना ना चाहिए॥ जिस भजन में राम का
ज़िन्दगी बेकार है,ये दुनिया असार है, जिसने लिया राम नाम, उसी का बेडा पार है..2.. इस दुनिया में खोज के देखा, माया के सब बन्दे हो,..2.. स्वार्थ के सब बन्दे देखे, तबियत के सब गंदे हो, अपनी सगी ना नार है, ना पुत्र रिश्तेदार है, जिसने लिया राम नाम, उसी का बेडा पार है।..2.. जिंदगी
जाके प्रिय ना राम-बैदेही, सो छाड़िये कोटि बैरी सम, जद्यपि परम स्नेही। तज्यो पिता प्रह्लाद, विभिसन बंधू, भारत महतारी। बलि गुरु तज्यो, कान्त ब्रज्बनितनी, भये मुद-मंगलकारी॥ नाते नेह राम के मनियत, सुह्रद सुसेव्य जहाँ लॉन। अंजन कहा अंखि फूटी, बहु तक कहूं कहाँ लौं॥ तुलसी सो सब भांति परम हित, पूज्य प्राण ते प्यारो। जासों
जल रही है राह का बन कर दिया जाने कितनी रातो से तेरी सिया खो के बैठी खुद में तुमको राम जी अपनी खातिर तो मैं हूँ बस नाम की आँखे मेरी रात दिन बरसा करे इक झलक पाने को बस तरसा करे काली रातो की सुभह भी आएगी एक दिन जीवन में खुशिया छायेंगी
दो है काया एक प्राण की जहाँ राम हैं वहीँ जानकी दो है काया एक प्राण की जहाँ राम हैं वहीँ जानकी जहाँ राम हैं वहीँ जानकी जहाँ राम हैं वहीँ जानकी॥ प्रभु जी आप हैं अंतर्यामी मन की व्यथा को समझे स्वामी हे नाथ सुनले अंतर्वाणी हे नाथ सुनले अंतर्वाणी साथी बना ले वन-उपवन
जरा देर ठहरो राम, तमन्ना यही है, अभी हमने जी भर के, देखा नहीं है।। कैसी घडी आज, जीवन की आई, अपने ही प्राणो की, करते विदाई, अब ये अयोध्या, अब ये अयोध्या हमारी नहीं है, अभी हमने जी भर के, देखा नहीं है।। माता कौशल्या की, आँखों के तारे, दशरथ जी के हो, राज
जय रघु नायक नाम हितकारी सुमिरन तेह सदा सुखकारी राम राम राम राम राम राम॥ सोवत भाग्य तुरत ही जागे सुमिरत राम नाम दुःख भागे राम राम राम राम राम राम॥ दशरथ के सुत लक्ष्मण रामा जग जानत हैं तुम्हरे नामा राम राम राम राम राम राम॥ विश्वामित्र और गुरु वशिष्ठ ज्ञान ध्यान की दिए
क्षमा करो तुम मेरे प्रभुजी, अब तक के सारे अपराध धो डालो तन की चादर को, लगे है उसमे जो भी दाग क्षमा करो.. तुम तो प्रभुजी मानसरोवर, अमृत जल से भरे हुए पारस तुम हो, इक लोहा मै, कंचन होवे जो ही छुवे तज के जग की सारी माया, तुमसे कर लू मै अनुराग