ए मेहंदीपुर के बालाजी, कभी मेरे घर भी आ जाना।

Hey Mehndipur Ke Balaji Kabhi Mere Ghar Bhi Aa Jana.

ए मेहंदीपुर के बालाजी, कभी मेरे घर भी आ जाना।
मैं दास आपका जन्मों से, आकर धीर बंधा जाना।।
तेरे रोज सवामण भोग लगे, नित खीर चूरमा खाये तूँ।
मेरे पास तो रूखी सूखी है, निर्धन के घर नहीं आये तूँ।
अब और सहा नहीं जाता है, दर्शन दे धन्य बना जाना।।1।।
सोना चांदी के वर्क तेरे, धन वाले आन चढ़ाते हैं।
खुशबू से भरा सिंदूर कई, मनचले भक्त ले आते हैं।
मेरा यह ध्वजा नारियल कर, स्वीकार दया दिखला जाना।।2।।
कई भक्त निराले मेवा और, मिश्री का भोग लगाते हैं।
कई लड्डू, बर्फी, पेड़ा ही लाकर अनुराग दिखाते हैं।
मैं दीन हीन दुःखियारा हूँ, मम खिल बतासे खा जाना।।3।।
सूंदर आभूषण वस्त्र नहीं, लाल लंगोटा लाया हूँ ।
स्वीकार तुच्छ यह भेंट करो, कोई भेंट न मोटा लाया हूँ।
मेरे अवगुण दोष क्षमा करके, नवजीवन ज्योति जगा जाना।।4।।
दुनिया ने बहुत सताया है, बस एक सहारा तेरा है।
ये लाल ‘चिरंजी’ बालाजी, हर समय पुजारी तेरा है ।
मैं बून्द हूँ प्रेम का सागर तूँ, सागर में बूँद समा जाना।। 5।।

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