राम सिया सुन्दर प्रतिछाई जगमगात मन खम्भन माहि

Ram Siya Sundar Pratichhai Jagamagaat Man Khambhan Maahi

राम सिया सुन्दर प्रतिछाई।
जगमगात मन खम्भन माहि।
राम राम राम राम राम राम राम॥

◾️ मनहुँ मगन रति धरी बहूरूपा।
देखत राम बियाहु अनूपा।
राम राम राम राम राम राम॥

नयन नीरू हटी मंगल जानि।
परिछन कारन मुदित मन रानी।
राम राम राम राम राम राम॥

◾️ वेद बिहित अरु तुलाचारु।
कीन्हा फल बिधि सब ब्यबहारु।
राम राम राम राम राम राम॥

◾️ सिये शोभा नहीं जानि बखानी।
जगदम्बे का रूप गुन खानी॥

◾️ उपमा सकल माहि लघु लागि।
प्रक्र तनारी अंग अंग अनुरागी॥

कुंवरु कुंवरि कल भांवरी देहि।
नइयां लाभ सब सादरी लेहि॥

◾️ जाए न बरनि मनोहर जोरि।
जो उपमा कहो सो थोरी॥

◾️ सिये बिलोकि धीरता भागी।
रहे कहावत परम बिरागी॥

◾️ लीन्ही राये पुरि लायी जानकी।
मिटी महामर जाद ज्ञान की॥

◾️ सिये महिमा रघुनायक जानी।
हर्षे ह्रदय हेतु पहिचानी॥

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