कृपा की ना होती जो आदत तुम्हारी

Kripa Ki Na Hoti Jo Aadat Tumhari

प्रिय लाल राजे जहा तहा वृन्दावन जान
वृन्दावन ताज एक पग जाये रसिक सुजान
उर्र ऊपर नित्य रहू लटका
अपनी बन माल का फूल बना दे
लेहरे टकराती हो जिससे
कामनिये कालिंदी का फूल बना दे
करकंज से थमते हो जिसको
उस वृक्ष कदम्ब को मूल बना दे

◾️ पद पंकज तेरे छुएंगे सदा
ब्रजराज हमें ब्रज धुल बना दे
कृपा की ना होती जो आदत तुम्हारी
तो सुनी ही रहती अदालत तुम्हारी
कृपा की ना होती जो आदत तुम्हारी
तो सुनी ही रहती अदालत तुम्हारी

◾️ हे नंदलाल सहारा तेरा है
हे गोपाल सहारा तेरा है
प्रेम से बोलो बांके बिहारी सरकार की जय हो
जो दीनो के दिल में जगह तुम ना पाते
हो अवगुण भरा शरीर मेरा
मैं कैसे तुम्हे मिल पाऊ
चुनरिया मेरी दाग दगिली
मैं कैसे दाग छुड़ौ
ना भक्ति ना ही प्रेम रस
मैं कैसे तुम्हे मिल पाऊ
आन पड़ा अब द्वार तिहरे
मैं अब किस द्वारे जाऊ

◾️ जो दीनो के दिल में जगह तुम ना पाते
तो किस दिल में होती हिफाज़त तुम्हारी
गोपाल सहारा तेरा है
नंदलाल सहारा तेरा है
ना मुल्जिम ही होते ना तुम होते हाकिम
ना घर घर में होती इबादत तुम्हारी
तुम्हारी ही उल्फत के दृग बिंदु है ये
तुम्हे सौपते है अमानत तुम्हारी
कृपा की ना होती जो आदत तुम्हारी
तो सुनी ही रहती अदालत तुम्हारी
गोपाल सहारा तेरा है
नंदलाल सहारा तेरा है

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